- 1 मेरे ह्रदय में बसने वाले ,मेरे प्रिय साथी तुम हो , इस पावन रथ को मंजिल तक पहुँचाने वाले साथी तुम हो , तुमको अपनी शक्ति का अहसास दिलाने आया हूँ , जो ख्वाब सजे इन आँखो में वह तुम्हे बताने आया हूँ \ 2 जो कर्म मिला हमें करने को वह तो नायब करिश्मा है , वे शब्द नही इस दुनिया में जो कह पाये इसकी महिमा है , परमात्मा के इस तोहफे को तुम्हे लुटाने आया हूँ , जो मुझे मिला इस जीवन में मैं तुम्हे बताने आया हूँ \ 3 हर जीवन है इक दिव्य ज्योति , कण -कण जीवन का है पावन मोती , इस दिव्य ज्योति का प्रकाश जीवन में फैलाने आया हूँ , आलोकित अमृतमय जीवन का अहसास जगाने आया हूँ \ 4 जग में सुन्दर कोई तो वह है मन की सुन्दरता , खुशियों से बढ़कर मोल नही जीवन में दौलत का , इस परम सत्य का तुमको मैं स्मरण दिलाने आया हूँ , जीवन खुशियों से भर जाये वह राह सुझाने आया हूँ \
RCM
RET PE LIKHE NAM TIKTE NHI ,RET PE HUM NAM LIKHTE NHI, * HUM PTTHRO PE NAM LIKHTE HAI,KYOKI PTTHR PE LIKHE NAM MITTE NHI!**
शुक्रवार, 4 सितंबर 2015
आरसीएम आमंत्रण
गुरुवार, 20 अगस्त 2015
रविवार, 9 अगस्त 2015
इतिहास गवाह है
जय आर सी एम्, दोस्तों ! दोस्तों, किसी भी काम को करने से पहले हमें 4 बातों का जानना जरुरी होता है। क्या है? क्या दे सकता हें ? क्यों करें ? कैसे करें ? तो अब हम बात कर रहें हैं की आर सी एम् "क्या है" के लिए पड़ें RCM PLAN इसी ब्लाग पर। क्या दे सकता है के लिए पढें निर्णय आपका इसी ब्लॉग पर। क्यों करें की हम बात करेंगें दोस्तों, इतिहास गवाह है, बड़े बुजुर्गों से सुना भी है की जब लोगो की इनकम के ये आंकडे चलते आए और अब देख भी रहे ह इनकम
जीवन शैली
इनकम
जीवन शैली
1940
5/-
बहुत अच्छा सा सरकारी
50/-
मौज करते थे
1960
50/-
बहुत अच्छा नहीं था
500/-
मौज करते थे
1980
500/-
वो तंग थे
5000/-
मौज करते थे
2000
5000/-
वो भी तंगी में थे
50000/-
मौज करते थे
सावधान
सावधान
!! सावधान !!
सावधान
सावधान
सन् ,2020,......भी आने वाला है, तब 50000/=रूपये महीने की जिसकी इनकम होगी वों दाल रोटी खायेगा और 500000/=रूपये {पांच लाख रूपये महिना जिसकी इनकम होगी वों मौज करेगा अब देखें की हर 20. साल के बाद एक 0 लगी है इस O की रफ्तार को पहचानने की जरुरत है
सरकारी नौकरी में प्रमोसन कितनी होगी चेक करें
प्राइवेट नौकरी में प्रमोसन कितनी होगी चेक करें .
अपना बिज़नस कैसा है चेक करें .
इतनी बड़ी इनकम केवल और केवल कोई नेटवर्क ही दे सकता हैक्योँ की : अमीर बनने के दो ही रास्ते हैं : 01.आप के पास बहुत सारा पैसा हो और आप कोई कम्पनी लगाइए और लोग आप के लिए काम करें . 02.RCM में आप एक नेटवर्क तैयार करें और उनके साथ मिल कर उनके और अपने सपने साकार करें क्योकि पैसा अमीर आदमी के लिए काम करता है, और आम आदमी पैसे के लिए काम करता हँ। दोस्तों आर सी एम् की ताकत को पहचानो और उस धरती के लाल टी सी छाबडा जी का धन्यवाद करो जिसने कई हजार करोड़ रूपये आप के लिए लगा दिए हैं आप पर विश्वाश करके। अब हमारा काम बचा ही कितना हँ ,केवल नेटवर्क तैयार करना और अपना और अपने बच्चों के सपने साकार करना। अगर ये भी नहीं होता है तो ना करें RCM और आने वाले समय का इंतजार करें और 0 की रफ्तार में बह जाने के लिए तैयार रहें ।
जीवन शैली
इनकम
जीवन शैली
1940
5/-
बहुत अच्छा सा सरकारी
50/-
मौज करते थे
1960
50/-
बहुत अच्छा नहीं था
500/-
मौज करते थे
1980
500/-
वो तंग थे
5000/-
मौज करते थे
2000
5000/-
वो भी तंगी में थे
50000/-
मौज करते थे
सावधान
सावधान
!! सावधान !!
सावधान
सावधान
सन् ,2020,......भी आने वाला है, तब 50000/=रूपये महीने की जिसकी इनकम होगी वों दाल रोटी खायेगा और 500000/=रूपये {पांच लाख रूपये महिना जिसकी इनकम होगी वों मौज करेगा अब देखें की हर 20. साल के बाद एक 0 लगी है इस O की रफ्तार को पहचानने की जरुरत है
सरकारी नौकरी में प्रमोसन कितनी होगी चेक करें
प्राइवेट नौकरी में प्रमोसन कितनी होगी चेक करें .
अपना बिज़नस कैसा है चेक करें .
इतनी बड़ी इनकम केवल और केवल कोई नेटवर्क ही दे सकता हैक्योँ की : अमीर बनने के दो ही रास्ते हैं : 01.आप के पास बहुत सारा पैसा हो और आप कोई कम्पनी लगाइए और लोग आप के लिए काम करें . 02.RCM में आप एक नेटवर्क तैयार करें और उनके साथ मिल कर उनके और अपने सपने साकार करें क्योकि पैसा अमीर आदमी के लिए काम करता है, और आम आदमी पैसे के लिए काम करता हँ। दोस्तों आर सी एम् की ताकत को पहचानो और उस धरती के लाल टी सी छाबडा जी का धन्यवाद करो जिसने कई हजार करोड़ रूपये आप के लिए लगा दिए हैं आप पर विश्वाश करके। अब हमारा काम बचा ही कितना हँ ,केवल नेटवर्क तैयार करना और अपना और अपने बच्चों के सपने साकार करना। अगर ये भी नहीं होता है तो ना करें RCM और आने वाले समय का इंतजार करें और 0 की रफ्तार में बह जाने के लिए तैयार रहें ।
RIGHT WEY
आश्चर्य जनक तरीके से सत्य होती श्रीमद भागवत की भविष्यवानिया...
श्रीमद भागवत के खंड दो,अंतिम अध्याय,कलयुग के गुण दोष के वर्णन में लिखा है की..
हे राजन (शुकदेव गोस्वामी राजा परीक्षित से)-
१) कलयुग में पाप चरम पर होगा..कलयुग के शासक नित नवीन तरीके से देश को लूटेंगे,टैक्स पर टैक्स लगाये जाएंगे,जिसके पास धन होगा सिर्फ उसी को न्याय मिलेगा,शासक की गद्दी पर स्त्रियों और शुद्रो का बोलबाला होगा,पाखंडी लोग राज करेंगे और धर्मात्मा लोग कष्ट भोगेंगे..
2)ब्राह्मण और विद्वान् के बारे में भागवत कहती है कि--हे राजन जो तिलक लगाएगा उसी को मुर्ख लोग ब्राह्मण समझेंगे,तिलक और जनेउ ब्राह्मणों की पहचान हुआ करेगी,ज्ञान से कोई लेना देना नहीं होगा,ब्राह्मण कुमार्गी हो जाएँगे। जो जितना वाक्पटु होगा उसको लोग उतना विद्वान समझेंगे,पाखंडी लोग साधू संतो का भेष बनाकर जन समुदाय को मुर्ख बनाएँगे,और बड़े बड़े पाखंडियो की तो लोग पूजा भी करने लगेंगे,भगवा वस्त्र पहने साधू संत समाज को लूटेंगे...
3)स्त्री के बारे में--हे राजन कलयुग की स्त्रिया निर्लज्ज हो जाएगी,नग्न घूमना,बड़े बड़े नाखून रखना और पति का तिरस्कार करना उनकी आदत बन जाएगा,ये स्त्रिया दूषित और चरित्रहीन हो जाएंगी और बहुत पति रखने वाली हो जाएंगी,अगर पति निर्धन होगा या मुसीबत में होगा तो ये स्त्रिया उसका त्याग कर किसी और के साथ भाग जाएँगी, निर्लज्जता इतनी बढ़ जाएगी की ये स्त्रिया माता पिता की मर्ज़ी के बगैर ही विवाह कर लिया करेंगी और बिन विवाहि माँ भी बन जाया करेंगी,राजन कलयुग में पतिव्रताओ का अकाल होगा,और दूषित स्त्रियों का बोलबाला होगा..
4)समाज --राजन समाज पूरा नष्ट हो चुका होगा,माता पिता की मर्ज़ी के बगैर औलादे विवाह कर लेंगी,जब तक यौन सुख मिलेगा तब तक साथ रहेंगी उसके बाद फिर अलग हो जाएंगी,बेटा अपने माँ बाप को सम्मान नहीं देगा बल्कि अपने सास ससुर को सम्मान देगा,गौ हत्या बढ़ जाएगी और मॉस मदिरा की दुकाने चारो तरफ होगी,लड़के लडकिया अपने हाथो में या शरीर में गुदना(tattoo) बनवाया करेंगे, लोग शुद्र प्राय हो जाएँगे,आचरण विचार सब शुद्रो जैसा होगा..
हे राजन कही वर्षा नहीं होगी अकाल पड़ेगा,तो कही बाढ़ अजाया करेगी,औषधिया बीमार मनुष्य के रोग का नाश नहीं कर पाएंगी,लोह नास्तिक प्राय हो जाएँगे और ईश्वर के अश्तित्व पर सवाल उठाएंगे,पाखण्ड चरम पर होगा,जो पाखंडी होगा वाही पूजित भी होगा,.गाये कम दूध देने लगेंगी.नदिया दूषित हो जाएंगी,.लेकिन सिर्फ वही सुखी रहेंगे जो ईश्वर के राम-कृष्ण नाम का उच्चारण करेंगे..(अलग अलग धर्मो में ईश्वर के अलग अलग नाम है जैसे अल्लाह,खुदा,यहोवा इत्यादि,तो इन नामो का उच्चारण भी किया जा सकता है)
यहाँ शुद्र का मतलब किसी जाति से नहीं बल्कि नीच आचरण करने वाले नेताओ से है भले वो किसी भी जाति के क्यों न हो..
इस तरह श्रीमद भागवत की भविष्यवाणिया पूर्ण रूप से सत्य साबित हो रही है.?
श्रीमद भागवत के खंड दो,अंतिम अध्याय,कलयुग के गुण दोष के वर्णन में लिखा है की..
हे राजन (शुकदेव गोस्वामी राजा परीक्षित से)-
१) कलयुग में पाप चरम पर होगा..कलयुग के शासक नित नवीन तरीके से देश को लूटेंगे,टैक्स पर टैक्स लगाये जाएंगे,जिसके पास धन होगा सिर्फ उसी को न्याय मिलेगा,शासक की गद्दी पर स्त्रियों और शुद्रो का बोलबाला होगा,पाखंडी लोग राज करेंगे और धर्मात्मा लोग कष्ट भोगेंगे..
2)ब्राह्मण और विद्वान् के बारे में भागवत कहती है कि--हे राजन जो तिलक लगाएगा उसी को मुर्ख लोग ब्राह्मण समझेंगे,तिलक और जनेउ ब्राह्मणों की पहचान हुआ करेगी,ज्ञान से कोई लेना देना नहीं होगा,ब्राह्मण कुमार्गी हो जाएँगे। जो जितना वाक्पटु होगा उसको लोग उतना विद्वान समझेंगे,पाखंडी लोग साधू संतो का भेष बनाकर जन समुदाय को मुर्ख बनाएँगे,और बड़े बड़े पाखंडियो की तो लोग पूजा भी करने लगेंगे,भगवा वस्त्र पहने साधू संत समाज को लूटेंगे...
3)स्त्री के बारे में--हे राजन कलयुग की स्त्रिया निर्लज्ज हो जाएगी,नग्न घूमना,बड़े बड़े नाखून रखना और पति का तिरस्कार करना उनकी आदत बन जाएगा,ये स्त्रिया दूषित और चरित्रहीन हो जाएंगी और बहुत पति रखने वाली हो जाएंगी,अगर पति निर्धन होगा या मुसीबत में होगा तो ये स्त्रिया उसका त्याग कर किसी और के साथ भाग जाएँगी, निर्लज्जता इतनी बढ़ जाएगी की ये स्त्रिया माता पिता की मर्ज़ी के बगैर ही विवाह कर लिया करेंगी और बिन विवाहि माँ भी बन जाया करेंगी,राजन कलयुग में पतिव्रताओ का अकाल होगा,और दूषित स्त्रियों का बोलबाला होगा..
4)समाज --राजन समाज पूरा नष्ट हो चुका होगा,माता पिता की मर्ज़ी के बगैर औलादे विवाह कर लेंगी,जब तक यौन सुख मिलेगा तब तक साथ रहेंगी उसके बाद फिर अलग हो जाएंगी,बेटा अपने माँ बाप को सम्मान नहीं देगा बल्कि अपने सास ससुर को सम्मान देगा,गौ हत्या बढ़ जाएगी और मॉस मदिरा की दुकाने चारो तरफ होगी,लड़के लडकिया अपने हाथो में या शरीर में गुदना(tattoo) बनवाया करेंगे, लोग शुद्र प्राय हो जाएँगे,आचरण विचार सब शुद्रो जैसा होगा..
हे राजन कही वर्षा नहीं होगी अकाल पड़ेगा,तो कही बाढ़ अजाया करेगी,औषधिया बीमार मनुष्य के रोग का नाश नहीं कर पाएंगी,लोह नास्तिक प्राय हो जाएँगे और ईश्वर के अश्तित्व पर सवाल उठाएंगे,पाखण्ड चरम पर होगा,जो पाखंडी होगा वाही पूजित भी होगा,.गाये कम दूध देने लगेंगी.नदिया दूषित हो जाएंगी,.लेकिन सिर्फ वही सुखी रहेंगे जो ईश्वर के राम-कृष्ण नाम का उच्चारण करेंगे..(अलग अलग धर्मो में ईश्वर के अलग अलग नाम है जैसे अल्लाह,खुदा,यहोवा इत्यादि,तो इन नामो का उच्चारण भी किया जा सकता है)
यहाँ शुद्र का मतलब किसी जाति से नहीं बल्कि नीच आचरण करने वाले नेताओ से है भले वो किसी भी जाति के क्यों न हो..
इस तरह श्रीमद भागवत की भविष्यवाणिया पूर्ण रूप से सत्य साबित हो रही है.?
SOCH SABSE BADA YOG
मैं मनुष्य को एक घने अंधकार में देख रहा हूं। जैसे अंधेरी रात में किसी घर का दीया बुझ जाये, ऐसा ही आज मनुष्य हो गया है। उसके भीतर कुछ बुझ गया है।
पर-जो बुझ गया है, उसे प्रज्वलित किया जा सकता है।
और, मैं मनुष्य को दिशाहीन हुआ देख रहा हूं। जैसे कोई नाव अनंत सागर में राह भूल जाती है, ऐसा ही आज मनुष्य हो गया है। वह भूल गया है कि उसे कहां जाना है और क्या होना है?
पर, जो विस्मृत हो गया है, उसकी स्मृति को उसमें पुन: जगाया जा सकता है।
पर-जो बुझ गया है, उसे प्रज्वलित किया जा सकता है।
और, मैं मनुष्य को दिशाहीन हुआ देख रहा हूं। जैसे कोई नाव अनंत सागर में राह भूल जाती है, ऐसा ही आज मनुष्य हो गया है। वह भूल गया है कि उसे कहां जाना है और क्या होना है?
पर, जो विस्मृत हो गया है, उसकी स्मृति को उसमें पुन: जगाया जा सकता है।
इसलिए, अंधकार है, पर आलोक के प्रति निराश होने का कोई कारण नहीं है। वस्तुत: अंधकार जितना घना होता है, प्रभात उतना ही निकट आ जाता है।
मैं देख रहा हूं कि सारे जगत में एक आध्यात्मिक पुनरूत्थान निकट है और एक नये मनुष्य का जन्म होने के करीब है। हम उसकी ही प्रसव-पीड़ा से गुजर रहे हैं।
पर, यह पुनरुत्थान हम सबके सहयोग की अपेक्षा में है। वह हम से ही आने को है, और इसलिए हम केवल दर्शक ही नहीं हो सकते हैं। उसके लिये हम सब को अपने में राह देनी है।
हम सब अपने आपको आलोक से भरें तो ही वह प्रभात निकट आ सकता है। उसकी संभावना को वास्तविकता में परिणत करना हमारे हाथों में है।
हम सब भविष्य के उस भवन की ईटं हैं। और, हम ही हैं वे किरणें जिनसे भविष्य के सूरज का जन्म होगा। हम दर्शक नहीं, स्रष्टा हैं।
और, इसलिए वह भविष्य का ही निर्माण नहीं, वर्तमान का भी निर्माण है। वह हमारा ही निर्माण है। मनुष्य स्वयं का ही सृजन करके मनुष्यता का सृजन करता है।
व्यक्ति ही समष्टि की इकाई है। उसके द्वारा ही विकास है और क्रांति है।
वह इकाई आप हैं।
इसलिए, मैं आपको पुकारना चाहता हूं। मैं आपको निद्रा से जगाना चाहता हूं।
क्या आप नहीं देख रहे हैं कि आपका जीवन एक बिलकुल बेमानी, निरर्थक और उबा देने वाली घटना हो गया है? जीवन ने सारा अर्थ और अभिप्राय खो दिया है। यह स्वाभाविक ही है। मनुष्य के भीतर प्रकाश न हो तो उसके जीवन में अर्थ नहीं हो सकता है।
मनुष्य के अंतस में ज्योति न हो, तो जीवन में आनंद नहीं हो सकता है।
हमें जो आज व्यर्थ बोझ मालूम हो रहा है, उसका कारण यह नहीं है कि जीवन ही स्वयं में व्यर्थ है। जीवन तो अनंत सार्थकता है, पर हम उस सार्थकता और कृतार्थता तक जाने का मार्ग भूल गये हैं। वस्तुत: हम केवल जी रहे हैं, और जीवन से हमारा कोई संबंध नहीं है। यह जीवन नहीं है। यह केवल मृत्यु की प्रतीक्षा है। और, निश्चय ही मृत्यु की प्रतीक्षा केवल एक ऊब ही हो सकती है। वह आनंद कैसे हो सकती है? मैं आपसे यही कहने को आया हूं कि इस दुःख-स्वप्न से बाहर होने का मार्ग है, जिसे कि आपने भूल से जीवन समझ रखा है।
वह मार्ग सदा से है। अंधकार से आलोक में ले जाने वाला मार्ग शाश्वत है।
वह तो है, पर हम उससे विमुख हो गये हैं। मैं आपको उसके सन्मुख करना चाहता हूं।
वह मार्ग ही धर्म है। वह मनुष्य के भीतर दीया जलाने का उपाय है। वह मनुष्य की दिशाहीन नौका को दिशा देना है।
महावीर ने कहा है:
जरामरण वेगेणं, बुज्झमाणाण पाणिणं।
धम्मो दीवो पइट्ठा य, गई सरणमुत्तमं।।
- 'संसार के जरा और मरण के वेगवाले प्रवाह में बहते हुए जीवों के लिए धर्म ही एकमात्र द्वीप है, प्रतिष्ठा है, गति है और शरण है।’
क्या आप उस प्रकाश के लिए प्यासे हैं, जो जीवन को आनंद से भर देता है? और, क्या आप उस सत्य के लिए अभीप्सु हैं, जो अमृत से संयुक्त कर देता है?
मैं तब आपको आमंत्रित करता हूं- आलोक के लिए और आनंद के लिए और अमृत के लिए। मेरे आमंत्रण को स्वीकार करें! केवल आख ही खोलने की बात है, और आप एक नये आलोक के लोक के सदस्य हो जाते हैं।
और कुछ नहीं करना है, केवल आख ही खोलनी है। और कुछ नहीं करना है, केवल जागना है और देखना है।
मनुष्य के भीतर वस्तुत: कुछ बुझता नहीं है- और न ही दिशा ही खो सकती है। वह आख बंद किये हो तो अंधकार हो जाता है और सब दिशाएं खो जाती हैं। आख बंद होने से वह सर्वहारा है और आख खुलते ही सम्राट हो जाता है।
मैं आपको सर्वहारा होने के स्वप्न से, सम्राट होने की जागृति के लिए बुलाता हूं। मैं आपकी पराजय को विजय में परिणत करना चाहता हूं और आपके अंधकार को आलोक में, और आपकी मृत्यु को अमृत में-लेकिन क्या आप भी मेरे साथ इस यात्रा पर चलने को राजी हैं?
मैं देख रहा हूं कि सारे जगत में एक आध्यात्मिक पुनरूत्थान निकट है और एक नये मनुष्य का जन्म होने के करीब है। हम उसकी ही प्रसव-पीड़ा से गुजर रहे हैं।
पर, यह पुनरुत्थान हम सबके सहयोग की अपेक्षा में है। वह हम से ही आने को है, और इसलिए हम केवल दर्शक ही नहीं हो सकते हैं। उसके लिये हम सब को अपने में राह देनी है।
हम सब अपने आपको आलोक से भरें तो ही वह प्रभात निकट आ सकता है। उसकी संभावना को वास्तविकता में परिणत करना हमारे हाथों में है।
हम सब भविष्य के उस भवन की ईटं हैं। और, हम ही हैं वे किरणें जिनसे भविष्य के सूरज का जन्म होगा। हम दर्शक नहीं, स्रष्टा हैं।
और, इसलिए वह भविष्य का ही निर्माण नहीं, वर्तमान का भी निर्माण है। वह हमारा ही निर्माण है। मनुष्य स्वयं का ही सृजन करके मनुष्यता का सृजन करता है।
व्यक्ति ही समष्टि की इकाई है। उसके द्वारा ही विकास है और क्रांति है।
वह इकाई आप हैं।
इसलिए, मैं आपको पुकारना चाहता हूं। मैं आपको निद्रा से जगाना चाहता हूं।
क्या आप नहीं देख रहे हैं कि आपका जीवन एक बिलकुल बेमानी, निरर्थक और उबा देने वाली घटना हो गया है? जीवन ने सारा अर्थ और अभिप्राय खो दिया है। यह स्वाभाविक ही है। मनुष्य के भीतर प्रकाश न हो तो उसके जीवन में अर्थ नहीं हो सकता है।
मनुष्य के अंतस में ज्योति न हो, तो जीवन में आनंद नहीं हो सकता है।
हमें जो आज व्यर्थ बोझ मालूम हो रहा है, उसका कारण यह नहीं है कि जीवन ही स्वयं में व्यर्थ है। जीवन तो अनंत सार्थकता है, पर हम उस सार्थकता और कृतार्थता तक जाने का मार्ग भूल गये हैं। वस्तुत: हम केवल जी रहे हैं, और जीवन से हमारा कोई संबंध नहीं है। यह जीवन नहीं है। यह केवल मृत्यु की प्रतीक्षा है। और, निश्चय ही मृत्यु की प्रतीक्षा केवल एक ऊब ही हो सकती है। वह आनंद कैसे हो सकती है? मैं आपसे यही कहने को आया हूं कि इस दुःख-स्वप्न से बाहर होने का मार्ग है, जिसे कि आपने भूल से जीवन समझ रखा है।
वह मार्ग सदा से है। अंधकार से आलोक में ले जाने वाला मार्ग शाश्वत है।
वह तो है, पर हम उससे विमुख हो गये हैं। मैं आपको उसके सन्मुख करना चाहता हूं।
वह मार्ग ही धर्म है। वह मनुष्य के भीतर दीया जलाने का उपाय है। वह मनुष्य की दिशाहीन नौका को दिशा देना है।
महावीर ने कहा है:
जरामरण वेगेणं, बुज्झमाणाण पाणिणं।
धम्मो दीवो पइट्ठा य, गई सरणमुत्तमं।।
- 'संसार के जरा और मरण के वेगवाले प्रवाह में बहते हुए जीवों के लिए धर्म ही एकमात्र द्वीप है, प्रतिष्ठा है, गति है और शरण है।’
क्या आप उस प्रकाश के लिए प्यासे हैं, जो जीवन को आनंद से भर देता है? और, क्या आप उस सत्य के लिए अभीप्सु हैं, जो अमृत से संयुक्त कर देता है?
मैं तब आपको आमंत्रित करता हूं- आलोक के लिए और आनंद के लिए और अमृत के लिए। मेरे आमंत्रण को स्वीकार करें! केवल आख ही खोलने की बात है, और आप एक नये आलोक के लोक के सदस्य हो जाते हैं।
और कुछ नहीं करना है, केवल आख ही खोलनी है। और कुछ नहीं करना है, केवल जागना है और देखना है।
मनुष्य के भीतर वस्तुत: कुछ बुझता नहीं है- और न ही दिशा ही खो सकती है। वह आख बंद किये हो तो अंधकार हो जाता है और सब दिशाएं खो जाती हैं। आख बंद होने से वह सर्वहारा है और आख खुलते ही सम्राट हो जाता है।
मैं आपको सर्वहारा होने के स्वप्न से, सम्राट होने की जागृति के लिए बुलाता हूं। मैं आपकी पराजय को विजय में परिणत करना चाहता हूं और आपके अंधकार को आलोक में, और आपकी मृत्यु को अमृत में-लेकिन क्या आप भी मेरे साथ इस यात्रा पर चलने को राजी हैं?
मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012
सुखमय जीवन का खजाना
स्वस्थ जीवन के लिए प्रातः
सूर्योदय से पहले जागना चाहिए तथा नित्य संध्या करनी चाहिए। वेद मंत्रों
में वह खजाना भरा पड़ा है जिससे मनुष्य अपना भौतिक जीवन सुखमय करने के
साथ-साथ आत्मिक सुख की अनुभूति भी करता है।
मंत्र शक्ति परमाणु से भी अधिक शक्तिशाली होती है वह विकृत वातावरण में सुकृति ला देती है। मनुष्य के तन, मन और हृदय को शुद्ध कर बुद्धि को श्रेष्ठ मार्ग में प्रचोदित करती है। इसीलिए गायत्री मंत्र में सविता यानी सूर्य उपासना करते हुए प्राप्त की जाती है। हमारी बुद्धि को श्रेष्ठ मार्ग की और प्ररित करती है।
जो लोग सूर्योदय से पहले शय्या त्याग कर नित्य कर्म कर लेते हैं उनकी बुद्धि स्वतः निर्मल हो जाती है। प्रातः सूर्योदय से पूर्व तथा सायं सूर्यास्त के समय ही संध्या करनी चाहिए।
कलियुग
में व्यक्ति बहुआयामी होने के कारण अत्यंत व्यस्त हो चुका है। वह भौतिक
उन्नति के जितने शिखर में पहुंच रहा है उतना ही आध्यात्मिक अवनति की ओर बढ़
रहा है।
इसका मुख्य कारण है वह आत्मकल्याण के कार्यों से जी चुरा रहा है। इसलिए हमें आत्मकल्याण का मार्ग अपना कर मंत्रों से सुखमय जीवन का निर्माण करना चाहिए।
मंत्र शक्ति परमाणु से भी अधिक शक्तिशाली होती है वह विकृत वातावरण में सुकृति ला देती है। मनुष्य के तन, मन और हृदय को शुद्ध कर बुद्धि को श्रेष्ठ मार्ग में प्रचोदित करती है। इसीलिए गायत्री मंत्र में सविता यानी सूर्य उपासना करते हुए प्राप्त की जाती है। हमारी बुद्धि को श्रेष्ठ मार्ग की और प्ररित करती है।
जो लोग सूर्योदय से पहले शय्या त्याग कर नित्य कर्म कर लेते हैं उनकी बुद्धि स्वतः निर्मल हो जाती है। प्रातः सूर्योदय से पूर्व तथा सायं सूर्यास्त के समय ही संध्या करनी चाहिए।
ND
इसका मुख्य कारण है वह आत्मकल्याण के कार्यों से जी चुरा रहा है। इसलिए हमें आत्मकल्याण का मार्ग अपना कर मंत्रों से सुखमय जीवन का निर्माण करना चाहिए।
रविवार, 1 अप्रैल 2012
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