मंगलवार, 23 अगस्त 2011

सुविचार


*iमनुष्य का जीवन विचारों से ही चलता हैं। यदि विचार अच्छे हैं, तो जीवन अच्‍छा बनेगा। यदि विचार खराब हैं तो जीवन खराब हो जायेगा !!!
*उँची सफ़लता उन्हीं लोगों को मिलती है, जो खुद पर विश्‍वास करते हैं, कि हमारे अन्दर परिस्थितियों से कुछ अधिक ताकत है।
*बुद्‍धिमत्‍ता का अर्थ यह नहीं की गलतियाँ होंगी ही नहीं। बल्कि यह है की गलतियों को जल्दी ठीक कर लेंगे। सब से बुद्‍धिमान गलती नहीं करेगा।
*सफ़लता का सूत्र > छोटे से छोटा काम भी पूरी श्रद्‍धा, बुद्‍धि और लगन से करें, ईश्‍वर की कृपा से सफ़लता निश्‍चित मिलेगी।
*जीवन कोई समस्या नहीं है, कि इस को सूलझाय़ा जाये, बल्कि जीवन तो एक सच्‍चाई है, जिस को आनन्द से अनुभव करना चाहिये। आशावादी बनें।
* स्वर्ण हूँ तो क्या हुआ तपना पडेगा, हार बनाना हो तो फ़िर गलना पडेगा ।जिन्दगी तो हर घडी लेगी परीक्षा, जो न दे उस को यहाँ पिटना पडेगा ॥
*सफ़लता के ४ सूत्रः – १. ध्यान से सुनना। २. गहराई से विचार करना। ३. एक सही निर्णय लेना। ४. उस को आचरण में लाना। सफ़लता आपके कदम छुएगी।
*आपत्‍तियों में घबराना नहीं, बल्कि भगवान का धन्यवाद करना चाहिये, क्योंकि उसी समय में तो आप परिश्रम करके विकास कर पाते हैं।
* एक मिनीट हमारे जीवन को नहीं बदल सकता, लेकिन एक मिनीट में लिया गया निर्णय हमारे जीवन को बदल सकता है। खूब विचार करके निर्णय लें।
* उन्‍नति के लिये प्रतिदिन आत्म निरीक्षण करें > आज कौन सा अच्छा कार्य नहीं हो पाया जो करना चाहिये था। और कौन सा गलत हुआ जो नहीं करना था।
*कितना भाग्यवान होगा वह व्यक्‍ति जिस का साथी बुद्‍धिमान हो, उस को समझता हो, और उस के सब अच्छे कार्यों में सहयोग देता हो। भाग्यवान बनें।
*आप के पास धन इतना होना चाहिये, कि आप की मुख्य आवश्यकतायें पूरी हो जायें, आवश्यकतायें पूरी हो सकती हैं इच्छाएं पूरी नहीं हो सकती।
* यदि आप चाहते हैं, की लोग आप पर विश्‍वास करें, तो पहले आप उन को यह विश्‍वास दिलायें, की आप उन पर विश्‍वास करते हैं !!!
* "मैं सफ़ल तो हो ही जाऊँगा" ऐसा सोच कर आप उंचे लक्ष्य के लिये पूरी मेहनत नहीं करेंगे, और असफ़ल होने पर निराशा में आ जायेंगे।
*यदि आप जानकारी प्राप्‍त करना चाहते हैं, तो दिमाग में रोज कुछ डालें। यदि ज्ञान प्राप्‍त करना चाहते हैं, तो दिमाग से रोज कुछ (कचरा) निकालें।
*असफ़लताएं वह अवसर हैं, जो हमें सीखाती हैं की अगली बार कार्य को कैसे ठीक करना है। गलती कहाँ हुई और उसको कैसे दूर करें !!!!!
*असफ़लता आप के लिये वरदान है या अभिशाप? यह तो हर एक व्यक्‍ति का अपना दृष्टिकोण है। बुद्‍धिमान लोग इसको वरदान समझ कर आगे बढते हैं।
*यदि आप अपनी असफ़लताओं का परीक्षण करेंगे, तो उन्हीं में आप को कुछ ऐसे बीज मिलेंगे, जो आप की असफ़लताओं को सफ़लताओं में बदल देंगे !!!!!!
*असफ़लताओं की तुलना में हमेशा सफ़लताओं के साथ जीना अधिक कठिन है। जीवन में असफ़लताएं आना तो स्वाभाविक है। फ़िर घबराना क्या !!!!!!!!
*असफ़लता का RISK लिये विना कोई उंची वस्तु आज तक कभी किसी को मिली नहीं और न ही मिलेगी। इसलिये असफ़ल होने पर घबरायें नहीं।
*क्षणिक असफ़लता को पूर्ण असफ़लता न मान लेवें। व्यक्‍ति जीवन में अनेक बार असफ़ल होकर भी पूर्ण असफ़लता से बहुत दूर हो सकता है।
*२ मुख्य कारणों से जीवन में असफ़लता मिलती है। १- जब हम विना सोचे कार्य करते हैं। २- जब हम सोचते ही रहते हैं, और कार्य नहीं करते।
*किया हुआ कर्म कभी निष्फ़ल नहीं होता, और सदा तुरन्त भी फ़ल नहीं मिलता। इसलिये अज्ञानी लोग पाप करने से नहीं डरते। पाप करने से डरो।
*उत्‍तम विचार यूँ ही नहीं आ जाते, उन के लिये गम्भीर चिन्तन चाहिये। जैसे बच्‍चों का निर्माण यूँ ही नहीं हो जाता, उस के लिये घोर परिश्रम चाहिये।
*पुरुषार्थियों के जीवन में कभी कमी नहीं रहती है, यदि कभी कुछ कमी आ भी जाये, तो वे लोग फ़िर मेहनत करके कुछ अधिक ही पा लेते हैं।
*उत्‍तम भविष्य ऐसी वस्तु नहीं है, जिस की आप को प्रतिक्षा करनी पडे। अपने भविष्य के निर्माता आप स्वयं हैं। मेहनत कीजिये > भविष्य बनाईये।
*वृद्‍धावस्था में ज्ञान के कारण सम्मान मिलता है। परन्तु यदि वृद्‍ध व्यक्‍ति में ज्ञान न हो तो वह वृद्‍धावस्था केवल बाल सफ़ेद ही करती है।
*"सीडीयाँ उन के लिये बनी हैं, जिन्हे सिर्फ़ छत पर जाना है।आसमाँ पर हो जिनकी नजर, उन्हें तो रास्ता खुद बनाना है” ॥
*अच्छा हृदय और अच्छा स्वभाव, दोनों चाहियें। अच्छे हृदय से कई रिश्तें बनेंगे, और अच्छे स्वभाव से वे रिश्‍ते जीवन भर टिकेंगे।
*सब कुछ आसान है, यदि आप पुरुषार्थी हैं। सब कुछ कठिन है, यदि आप आलसी हैं। कृपया पुरुषार्थी बनें, आलसी नहीं।
*१. हजारों मील की लंबी यात्रा केवल १ कदम से शुरू होती है। अपनी जीवन यात्रा को शुरु करने के लिये कम से कम १ कदम तो बढायें !!!!!
*२. कला हमें उच्‍च स्तर पर ले जायेगी। परन्तु उत्‍तम चरित्र ही हमें उस उच्‍च स्तर पर टिकाये रखेगा। कृपया अपना चरित्र उत्‍तम बनायें।
*अपने जीवन को कष्टमय और तनावयुक्‍त बनाने का सबसे बडा कारण है > दूसरों से ऐसी आशाएं रखना कि – वे आप की इच्छानुसार सब कार्य करेंगे।
*जिन परिस्थितियों को आप पसन्द नहीं करते, उन में आप कैसा व्यवहार करते हैं? उस से आप की योग्यता की परीक्षा हो जायेगी, आप कहाँ खडे हैं?
*जो सीखना छोड देता है, वह वृद्‍ध हो गया है, चाहे वह २० वर्ष का हो या ८० का। सीखते रहने की प्रवृत्‍ति आप को जवान बनाये रखेगी।
*एक छोटा सा छिद्र पानी की पूरी बालटी को खाली कर देता है, ऐसे ही थोडा सा अभिमान एक उत्‍तम हृदय की सारी उत्‍तमता को नष्ट कर देता है।
*जीवन में हर चीजें नाशवान है, यदि सुख मिल रहा है, तो ठीक है। यदि दुःख भी मिल रहा है, तो वह भी सदा रहने वाला नहीं है।
*जो लोग वचन देने में देर लगते हैं, वे वचन का पालन करने में विश्‍वास करने के योग्य होते हैं। जल्दी वचन न दें, देना तो पूरा करें।
*जो व्यक्‍ति बहानें बनाकर पीछे नहीं लौटता, कठिनाइयों से पूरा संघर्ष करता है, सफ़लता उसके कदम चुमती है। सफ़ल बनें।
* "चुनौतियाँ" जीवन को रुचिकर बनाती हैं, और उन पर "विजय" जीवन को अर्थपूर्ण बनाता है। जीवन के कठिन निर्णय बुद्‍धिपूर्वक लेवें।
*अपने आप से केवल एक ही प्रश्‍न पूँछें > "सफ़लता प्राप्‍त करने के लिये त्याग और तप करने को क्या आप तैय्यार हैं ?" यदि हाँ, तो सफ़लता निश्‍चित है।
* यदि आप जीवन में कुछ विशेष परिवर्तन लाना चाहते हैं, तो कुछ विशेष कार्य करें। क्या ? दूसरों को सुख देने का अभ्यास बनायें।
*जो लोग यह कहते हैं, कि “यह कार्य कभी नहीं हो सकता”। वास्तव में या तो वे आलसी हैं, या उनके कार्य में किसी ने बाधा डाली है।
*दुराभिमानी लोगों की १ विशेषता > वे दूसरों की प्रसन्‍न कभी नहीं करतें। नम्र लोगों की १ खूबी > वे दूसरों की निन्दा कभी नहीं करतें।
*जीवन में २ रास्तें हैं। १ - या तो परिस्थितियों के साथ चलो, और खुश रहो। २ - या परिस्थितियों को बदलने की जिम्मेदारी लो। शिकायत मत करो !!!!!
*आप के चरित्र की सही पऱीक्षा तब होती है, जब यह पता चले कि - आप उन लोगों के लिये क्या करते हैं, जो आपके लिये कुछ भी नहीं कार सकते।
*आप को प्रसन्‍न रहने की आदत स्वयं ही बनानी होगी। कोई दूसरा आप को सुख नहीं दे सकता। आप की मेहनत कोई दूसरा नहीं कर सकता। स्वयं सुखी बनें।
* जीवन उन के लिये मूल्यवान नहीं है, जो दूसरों के सुख में हिस्सेदार बनते हैं। बल्कि उन के लिये है, जो दूसरों के दुःख में उन का साथ देते हैं।
*सामान्य स्थितियों से गुजरना कोई बडी बात नहीं है। कलाकारी तो तब है, जब आप कठिन परिस्थितियों में से सकुशल बाहार आ जायें।
*अपनी मेहनत से प्राप्‍त संपत्‍ति से जो सुख मिलता है, वह दूसरों की मेहनत से कमाई संपत्‍ति का भोग करने से कभी नहीं। स्वयं मेहनत करें।
*केवल स्वप्‍न देख देख कर लम्बा जीने से अच्छा है, कम जीकर कुछ इतिहास बनाना। भले ही कम जीयें, परन्तु कुछ इतिहास अवश्य बनायें।
*"अभ्यास" व्यक्‍ति को "कुशल" नहीं बनाता। बल्कि "सही अभ्यास" व्यक्‍ति को "कुशल" बनाता है। सही चीजों का अभ्यास करें, गलत का नहीं।
*बीती दुःखदायक बातों को याद करने से दुःख बढता हैं, उनको याद न करें। बीती अच्छी घटनाओं को याद करके उनसे प्रेरणा लेकर उत्साही बनें।
*जिससे आप प्रेम करते हैं, उसको दुःख न देवें, दुःख देने में कुछ ही क्षण लगेंगे, लेकीन उसका प्रेम वापस प्राप्‍त करने में कई वर्ष लग जायेंगे।
*एक छोटी यात्रा भी आप के लिए कठिन होगी, जब आप यात्रा में अकेले होंगे। एक लम्बी यात्रा भी आप के लिए आसान होगी, जब कोई साथी आप के साथ होगा।
* आश्‍चर्य > जब कोई हमारे दिल में प्रवेश करता हैं, तो दिल हलका लगता हैं। और जब कोई हमारे दिल को छोड देता हैं, तो यह भारी हो जाता हैं।
*भगवान् ने आपकी सभी इच्छित वस्तुएं नहीं दीं, परन्तु आवश्यक वस्तुएं तो सब की सब दीं। इसलिये भगवान् का धन्यवाद अवश्य करें।
*जब आप दुःखी होते हैं, तो दूसरों से प्रेम चाहते हैं। जब दुसरे दुःखी होते हैं, क्या तब आप दूसरों को अपना प्रेम बांटते हैं? हैं न आश्‍चर्य!
*उन्‍नति की जाँच करने का सही तरिका हैं “तुलना”। यह तुलना दूसरों से नहीं करनी, बल्कि अपने ही बीते कल के दिन से, आज के दिन की करें !!!!!
*अपनी समस्याओं के बारे में दूसरों से शिकायत न करें, आधे से अधिक समस्याएं आपने स्वयं उत्पन्‍न की हैं। आत्म निरीक्षण से उन्हें दूर करें।
*प्रत्येक चुनौतियों को जीत लेने पर आप कुछ और मजबूत, अधिक अनुभवी और अधिक तैय्यार हो जाते हैं, अपनी बाकी जीवन यात्रा को पूरा करने के लिये।
*जो गलतियाँ कर चुके हैं, उनका तो दण्ड भोगना ही पडेगा। कम से कम इतना तो संकल्प कर ही सकते हैं, कि अब और गलतियाँ नहीं करेंगे।
*अपनी तुलना किसी भी व्यक्‍ति से न करें, यदि आप ऐसा करते हैं, तो आप अपना ही अपमान कर रहे हैं। संसार में हर व्यक्‍ति स्पेशल = अलग ही हैं।
*दूसरों के गुण देखें। यदि आप सब में ही दोष देखेंगे, तो किसी के भी साथ नहीं रह पायेंगे। जिनके साथ रहते हैं, उनके गुण देखें दोष नहीं।
*४ पर हमेशा विश्‍वास रखें। माता, पिता, सच्‍चें गुरु और ईश्‍वर। ये कभी दुःख नहीं देंगे। जो इन की बात नहीं मानेगा, वह ज़रूर दुःखी होगा।
* ४ चीजें कभी न तोडे = विश्‍वास, वचन, सम्बन्ध और दिल। जब ये चीजें टूटती हैं, तो आवाज़ तो नहीं आता, लेकिन कष्ट बहुत होता हैं। किसी से प्रेम करना हो तो दिल से करो, सिर्फ़ ज़ुबान से नहीं। किसी पर गुस्सा करना हो तो सिर्फ़ ज़ुबान से करो, दिल से नहीं। सुखी रहोगे।
* बुरा समाचार > समय उडता हुआ भागा जा रहा हैं। अच्‍छा समाचार > पायलट आप हैं। जिधर चाहें, उधर ही समय का सदुपयोग कर सकते हैं।
*सभी पर विश्‍वास करना खतरनाक हैं। किसी पर भी विश्‍वास न करना उससे भी अधिक खतरनाक हैं। खुद पर और ईश्‍वर पर अवश्य विश्‍वास करें।
* हर व्यक्‍ति सारी दुनियाँ को बदल देना चाहता हैं, परन्तु अपने आप को कोई बदलाना नहीं चाहता। अपने आप को बदलने से ही सुख मिलेगा।
*"हमेशा FIRST आना" ही जीतने का अर्थ नहीं हैं, जीतने का यह भी तो अर्थ हैं, कि अब आप "पहले से अधिक अच्छ काम करने लगे हैं।"
*प्रेम करना सीखें > यदि हम दिखने वाले व्यक्‍ति से प्रेम नहीं कर सकते, उससे घृणा करते हैं, तो न दिखने वाले ईश्‍वर से कैसे प्रेम कर पायेंगे?

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